दुर्गा सप्तशती सिद्ध सम्पुट मंत्र | Durga Saptashati Siddha Samput Mantra

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30 Durga Saptashati Siddha Samput Mantra :- दुर्गा सप्तशती सिद्ध मंत्र वे मंत्र हैं जिनके जाप से माँ दुर्गा प्रसन्न होकर अपने भक्तों को इच्छित फल प्राप्ति का अवसर देती है, Durga Saptashati के सिद्ध मंत्र के मंत्र विभिन्न प्रकार के होते है, जो कि हर एक इच्छाओ पर निर्भर करती है, और इन मंत्रो का कम से कम 11 , 21 , 51 अथवा 108 बार जाप करने से उस व्यक्ति की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
Shri Durga Saptashati के संहार की शौर्य गाथा से अधिक कर्म, भक्ति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हैं। यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। यह देवी महात्म्य धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है। यह ऐसी शक्ति है जिससे जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते है,रोग दूर होते है,भय नही होता है,सफलता मिलती है।

Durga Saptashati Siddha Samput Mantra
Durga Saptashati Siddha Samput Mantra

|| Durga Saptashati Siddha Samput Mantra ||

सामूहिक कल्याण के लिये मंत्र
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्‍‌र्या ।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ॥

विश्‍व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये मंत्र
यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्‍च न हि वक्तुमलं बलं च ।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ॥

विश्‍व की रक्षा के लिये मंत्र
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्‍वम् ॥

विश्‍व के अभ्युदय के लिये मंत्र
विश्‍वेश्‍वरि त्वं परिपासि विश्‍वं
विश्‍वात्मिका धारयसीति विश्‍वम् ।
विश्‍वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्‍वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ॥

विश्‍वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये मंत्र
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
प्रसीद विश्‍वेश्‍वरि पाहि विश्‍वं त्वमीश्‍वरी देवि चराचरस्य ॥

विश्‍व के पाप-ताप-निवारण के लिये मंत्र
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं
यथासुरवधादधुनैव सद्यः ।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु
उत्पातपाकजनितांश्‍च महोपसर्गान् ॥

विपत्ति-नाश के लिये मंत्र
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये मंत्र
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्‍वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ।

भय-नाश के लिये मंत्र
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥

एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् ।
पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥

ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् ।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते ॥

पाप-नाश के लिये मंत्र [10]
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत् ।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽनः सुतानिव ॥

रोग-नाश के लिये मंत्र
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥

महामारी-नाश के लिये मंत्र
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥

आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये मंत्र
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये मंत्र
पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ॥

बाधा-शान्ति के लिये मंत्र
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्‍वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥

सर्वविध अभ्युदय के लिये मंत्र
ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां
तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः ।
धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा
येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना ॥

दारिद्र्यदुःखादिनाश के लिये मंत्र
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता ॥

रक्षा पाने के लिये मंत्र
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके ।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च ॥

समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये मंत्र
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः
स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु ।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्का
ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्तिः ॥

सब प्रकार के कल्याण के लिये मंत्र [20]
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

शक्ति-प्राप्ति के लिये मंत्र
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये मंत्र
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्‍वार्तिहारिणि ।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव ॥

विविध उपद्रवों से बचने के लिये मंत्र
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्‍च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र ।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्‍वम् ॥

बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये मंत्र
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः ।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ॥

भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये मंत्र
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम् ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये मंत्र
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्‍‌या चण्डिके दुरितापहे ।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये मंत्र
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी ।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः ॥

स्वर्ग और मुक्ति के लिये मंत्र
सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते ।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥

मोक्ष की प्राप्ति के लिये मंत्र
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्‍वस्य बीजं परमासि माया ।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ॥

स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये मंत्र
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके ।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय ॥

दुर्गा सप्तशती के 30 सिद्ध सम्पुट मंत्र।

Durga Saptashati Siddha Samput Mantra

दुर्गा सप्तशती का मूल मंत्र क्या है?

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमो स्तु ते ॥ सृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमो स्तु ते ॥ ॐ कात्यायनि महामाये महायेगिन्यधीश्वरि।

दुर्गा सप्तशती को सिद्ध कैसे करें?

प्रथम दिन दुर्गा सप्तशती शुरू करने से पहले नर्वाण मंत्र “ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” का 108 बार पाठ जरूर करें। अर्गला, दुर्गा कवच, कीलक स्तोत्र, देवी के 108 नाम तथा सर्व कामना सिद्ध प्रार्थना प्रतिदिन पाठ के शुरू में पढ़े। पाठ के अंत में क्षमा प्रार्थना जरूर पढ़ें। 

दुर्गा सप्तशती में कुल कितने मंत्र हैं?

बारहवें अध्याय में देवी-चरित्रों के पाठ का महातम्य 41 मंत्रों में वर्णित है तथा तेरहवें एवं अंतिम अध्याय में 29 मंत्रों के द्वारा सुख एवं वैश्य को देवी का वरदान प्राप्त हुआ है। इस प्रकार संपूर्ण दुर्गासप्तशती में 700 मंत्र है जो सदैव उपादेय एवं स्मरणीय है।

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